UPS एक सुरक्षित पेंशन योजना है, जबकि NPS एक मार्केट लिंक योजना है, जिसमें निवेश पर शेयर बाजार का रिस्क रहता है. NPS में वेतन से 10% (बेसिक+डीए) की कटौती होती है. वहीं UPS में भी 10 प्रतिशत अमाउंट कंट्रीब्यूट करना होता है. लेकिन सरकार की तरफ से UPS में 18.5 प्रतिशत का योगदान दिया जाएगा।
नई पेंशन स्कीम के प्रति सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी के बाद केंद्र सरकार उसकी जगह यूनिफाइड पेंशन स्कीम ले आई है. सरकारी घोषणा के अनुसार यह स्कीम एक अप्रैल 2025 से लागू होगी. लेकिन इस स्कीम के लागू होने से कई सवाल खड़े हुए हैं।
क्यों लाई गई थी न्यू पेंशन स्कीम?
एनपीएस और यूपीएस के बीच सबसे बड़ा फर्क यह है कि यूपीएस के तहत सरकारी कर्मचारियों को एक निर्धारित पेंशन मिलना तय है. जबकि एनपीएस के तहत ऐसा नहीं था. दरअसल केंद्र सरकार देश की पेंशन नीतियों में सुधार करने के लिए 1 जनवरी 2004 को न्यू पेंशन स्कीम लाई थी. ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत सरकारी कर्मचारियों की पेंशन उनकी आखिरी तनख्वाह का 50 प्रतिशत निर्धारित थी. साथ ही इसमें महंगाई भत्ता भी शामिल था. इसमें समस्या यह थी कि पेंशन से जुड़ा हुआ कोई फंड नहीं था. यानी हर साल सरकार का कर्ज बढ़ता ही चला जा रहा था।
क्या कहती थी एनपीएस ?
सरकार इसी समस्या से निपटने के लिए न्यू पेंशन स्कीम लेकर आई. एनपीएस में सबसे पहले तो सुनिश्चित पेंशन की शर्त खत्म कर दी गई. दूसरा बड़ा बदलाव यह हुआ कि अब कर्मचारी अपनी पेंशन में खुद 10 प्रतिशत योगदान देते थे और सरकार भी उनके बराबर योगदान देती थी 2019 में इसे बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया गया था।
एनपीएस के तहत कर्मचारी कम रिस्क से लेकर ज्यादा रिस्क वाली कई योजनाओं में से एक चुन सकते थे. एनपीएस के तहत योजनाएं एसबीआई, एलआईसी, यूटीआई, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, कोटक महिंद्रा, अदित्य बिड़ला, टाटा और मैक्स सहित नौ पेंशन फंड मैनेजर पेश करते थे. इस स्कीम में न सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को अपनी पेंशन में खुद योगदान देना था, बल्कि उन्हें कम पेंशन मिलना भी तय था. यहीं से यूनीफाइड पेंशन स्कीम का रास्ता साफ हुआ
क्यों आई यूपीएस ?
न्यू पेंशन स्कीम को लेकर सरकारी कर्मचारियों के बीच लंबे समय से खासी नाराजगी थी. विपक्ष ने बीते कुछ समय में इसका अच्छी तरह फायदा उठाया. विपक्ष ने हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब सहित जिन भी राज्यों में सरकार बनाई है वहां ओल्ड पेंशन स्कीम को दोबारा लागू कर दिया।
न्यू पेंशन स्कीम की आलोचना को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2023 में तत्कालीन फाइनेंस सेक्रेट्री टीवी सोमनाथन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया. इस समिति ने अलग-अलग संस्थाओं और राज्यों के साथ 100 से ज्यादा बैठकें करके सरकार के सामने अपनी सिफारिशें रखीं. जिसके नतीजे में केंद्र सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम की घोषणा की।
एनपीएस से कैसे अलग है यूपीएस ?
एनपीएस के बरक्स यूपीएस रिटायर हो चुके सरकारी कर्मचारियों को एक निश्चित पेंशन देने का वादा करती है. नई स्कीम के तहत पेंशन में कर्मचारी का योगदान तनख्वाह का 10 प्रतिशत ही रहेगा. जबकि सरकार 18.5 प्रतिशत का योगदान करेगी. केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार यूपीएस की पांच प्रमुख विशेषताएं हैं।
1. सुनिश्चित पेंशन: कर्मचारी को रिटायर होने पर उसके आखिरी 12 महीनों के औसत मूल वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलेगा. यह तरीका कम से कम 25 साल तक नौकरी करने वालों के लिए अपनाया जाएगा. सरकारी नौकरी में 25 साल से कम समय बिताने वालों के लिए यह धनराशि कम होती जाएगी.
2. सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन: अगर कोई व्यक्ति न्यूनतम 10 साल की नौकरी के बाद रिटायर होता है तो यूपीएस में उसे 10,000 रुपये प्रति माह की सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन दी जाएगी.
3. सुनिश्चित पारिवारिक पेंशन: किसी रिटायर हो चुके कर्मचारी की मृत्यु पर उसके निकटतम परिवार को उसकी अंतिम पेंशन का 60% दिया जाएगा.
4. महंगाई सूचकांक: उपरोक्त तीन उल्लिखित पेंशनों में महंगाई राहत होगी. इसकी गणना औद्योगिक श्रमिकों के लिए अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (All India Consumer Price Index) के आधार पर की जाएगी.
5. रिटायरमेंट पर एकमुश्त भुगतान: ग्रेच्युटी के अलावा यह भुगतान किया जाएगा. हर छह महीने की सेवा के लिए रिटायरमेंट की तारीख पर मासिक तनख्वाह (वेतन+महंगाई भत्ता) का 1/10वां हिस्सा इस राशि में जोड़ दिया जाएगा.
कौन उठा सकेगा यूपीएस का फायदा?
यूपीएस 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी लेकिन 2004 के बाद एनपीएस के तहत रिटायर होने वाले भी इसका फायदा उठा सकेंगे. (एनपीएस सेवानिवृत्त लोगों) में उन्हें एनपीएस के तहत पहले से मिल चुकी रकम के साथ बकाया रकम जोड़ दी जाएगी।
फाइनेंस सेक्रेट्री टीवी सोमनाथन ने कहा की मुझे लगता है कि 99 प्रतिशत से ज्यादा लोग यूपीएस में जाना बेहतर समझेंगे. जहां तक मेरी जानकारी है, लगभग कोई भी एनपीएस में नहीं रहना चाहेगा. लेकिन अगर ऐसा कोई है तो हम उसके पास विकल्प छोड़ रहे हैं।
इसका मतलब यह है कि कर्मचारी एनपीएस के तहत बने रहने का विकल्प चुन सकते हैं, लेकिन यह उनके लिए फायदेमंद होने की संभावना नहीं है. सोमनाथन ने कहा कि वर्तमान में घोषित योजना केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए है, लेकिन राज्य भी इसे अपना सकते हैं।