बाबा हरजीत सिंह ने कहा कि मेरा किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है और मैं केवल सनातन परंपराओं का वाहक हूं। मैं अपने गले में रुद्राक्ष माला पहनता हूं।
जत्थेदार बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने अंत में कहा कि जब भी देश और धर्म को जरूरत होगी, वह और उनका परिवार कभी पीछे नहीं हटेगा।
नई दिल्ली| जिन निहंगों सिखों ने साल 1858 में बाबरी मस्जिद पर पूरी तरह से कब्जा किया था. अब उनके वंशज ही अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के दिन लंगर शुरू करने वाले हैं. इस बात की जानकारी खुद ब खुद निहंग सिख के 8वें वंशज जत्थेदार बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर की ओर से दी गई है.
उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ में 22 जनवरी के दिन अयोध्या में संगत भी होगी और 1858 की घटना का जिक्र के बाद सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर पर भी फैसला इस वक्त ही सुनाया था जिसकी वजह से या खास फैसला लिया गया है.
क्या रहा पूरा मामला
दरअसल, यह मामला साल 1858 में नवंबर के महीने में हुआ था. जिसमें निहंग बाबा फकीर सिंह खालसा के साथ 25 निहंगों ने अयोध्या के बाबरी मस्जिद पर अपना हक जता लिया था. उन्होंने इसमें हवन भी किया इसके बाद निहंगों ने मस्जिद की दीवार पर राम-राम भी लिखा था. इसके साथ-साथ केसरिया झंडा भी लहराया था. इसको लेकर 30 नवंबर 1858 के दिन अवध पुलिस थाने में 25 नियमों के खिलाफ फिर भी दर्ज कराई गई थी.
राम मंदिर में शुरू होगा लंगर
बता दें कि, अब चंडीगढ़ में पत्रकारों से चर्चा करते हुए बाबा हरजीत सिंह रसलपुर की ओर से कहा गया कि, भगवान राम के सच्चे भक्त हैं और अब हम राम मंदिर की भी प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में यानी 22 जनवरी 2024 को शामिल हो रहे हैं. मैं भला कैसे इस छड़ से दूर हो सकता हूं और हम अपने साथियों के साथ मिलकर इस दिन अयोध्या में लंगर चालू करेंगे.
इस मौके पर उन्होंने कहा कि मैं नियम सीखे और मैं सिख धर्म के साथ सनातन धर्म को भी बराबर का दर्जा देता हूं. इसीलिए हम या फैसला ले रहे हैं और भक्तों की सेवा में लंगर शुरू करने का प्लान बना रहे हैं।
30 नवंबर 1858 को निहंगों ने किया था बाबरी पर कब्जा
अयोध्या में राम मंदिर से जुड़े इतिहास के पन्नों में 30 नवंबर 1858 का दिन बेहद खास है। इसी दिन बाबा फकीर सिंह खालसा की अगुवाई में 25 सिख निहंगों ने बाबरी ढाँचे पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने कई दिनों तक बाबरी पर कब्जा बनाए रखा था और राम नाम का पाठ किया था। उन्होंने बाबरी ढाँचे पर राम नाम भी लिख दिया।
बाबरी पर गैर-मुस्लिमों के कब्जे का पहला प्रमाण यही है। इसको लेकर अवध के थानेदार शीतल दुबे ने बाबरी के अधिकारी की शिकायत पर 25 निहंग सिखों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अवध के थानेदार की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है।
राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कॉपी के पेज नंबर 164 पर इस एफआईआर का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि दो दर्जन निहंग सिखों ने बाबा फकीर सिंह खालसा के नेतृत्व में 30 नवंबर 1858 को बाबरी ढाँचे पर कब्जा कर लिया था और हवन यज्ञ करने के साथ ही दीवारों पर राम नाम लिखा था।