मैं स्वभाव से आशावादी हूं लेकिन गलत साबित होने का अधिकार भी साथ रखता हूं। जब लोग आपकी तारीफ करें तब सावधान रहें, क्योंकि सबसे बड़ी गलतियां तब होती है जब आप सर्वोत्तम समय जी रहे होते हैं। बाजार तो मौसम की तरह है, आपको पसंद ना भी आ रहा हो तो भी इसे झेलना हो होगा।
सबसे बड़ी गलतियां तब होती हैं, जब आपसर्वोत्तम समय में जी रहे होते हैं।हूं तो मैं इनकम टैक्स अफसर का बेटा लेकिन साथ ही मारवाड़ी अग्रवाल भी हूं। व्यापार हमारे खून में है। मेरे पिताजी को भी शेयर बाजार में थोड़ी बहुत रुचि थी। जब बारह-तेरह साल का था तो उनके दोस्त आते थे अक्सर शाम को और शेयर बाजार पर बात करते थे। मेरे मन में भी खूब सवाल होते थे और पापा से पूछता था कि इस कंपनी के शेयर के भाव क्यों बढ़े, उसके क्यों कम हुए। पिताजी बोलते थे अखबार पढ़ो और जिस कंपनी की खबर छपे, उसका शेयर बाजार में रिएक्शन देखो।
उस उम्र से जो शेयर बाजार की तरफ आकर्षित हुआ तो अभी तक वो खिंचाव कम नहीं हुआ है। जब बीकॉम किया तो पिताजी बोले अब क्या करोगे, तो मैंने जवाब दिया शेयर बाजार करूंगा। पिताजी ने कहा, वहां सारा पैसा गवां बैठे तो कोई नौकरी भी नहीं देगा, इसलिए पहले सीए करो। मैंने सीए किया। जब सीए हुआ तो पिताजी ने पूछा अब क्या करोगे, तो मेरा जवाब था कि शेयर बाजार में इनवेस्ट करूंगा। पिताजी ने कहा, इसके लिए पैसा कहां है... मेरे से मत मांगना। तुम नौकरी करो, मुंबई में घर है ही... फिर लगाओ अपना कमाया इस बाजार में उन्होंने समझाया कि आपकी जरूरतें हैं आपकी दुनिया है, निडर बनो... मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, लेकिन मेरा पैसा नहीं। मुझ पर भी जिम्मेदारी थी नहीं, शादी हुई नहीं थी, घर का खर्चा पैरेंट्स देख ही रहे थे। 5000 रुपए से शेयर का काम शुरू किया।
भाई भी सीए था तो उसने मुझे दो- तीन क्लाइंट्स से मिलवाया। उस जमाने में 12 टका ब्याज मिल जाता था मैंने उन्हें 18 टका का लालच दिया और उनसे पैसा लिया जो शेयर मार्केट में इनवेस्ट किया। यह 1985 की बात है मैंने 12.50 लाख रुपए की फंडिंग जुटाई और एक साल में उससे 30 लाख रुपए बनाए। 1989 का बजट आने को था मैंने अपने दो करोड़ इस उम्मीद में लगाए कि बजट अच्छा होगा। उस जमाने में शाम को बजट आता था और बाजार शाम छह से नौ खुलता था।
शाम छह बजे मेरी नेटवर्थ दो करोड़ रुपए थी और रात नौ बजे तक 20 करोड़ रुपए हो गई थी।जब पैसा आपके पास आता है तो आप अपनी शर्तों पर जिंदगी जी सकते हैं। जो भी सफलता मुझे मिली, मुझे लगता है उसमें सब, मेहनत का तो हाथ है ही... एक और चीज का भी योगदान है। मैंने हर हार को मुस्करा कर स्वीकार किया है। मुझे कई दफा नुकसान हुआ है। बहुत बार मैंने नुकसान भरने के लिए शेयर बेचे। लेकिन हर बार कुछ सीखा है। मैं गलती हो जाने के भय से कभी नहीं रुका। गलती करते वक्त केवल इतनी गुंजाइश रखिए कि फिर से कोई गलती करने की जगह जरूर रहे। अगर आप गलती करने से डर गए, तो कभी फैसला नहीं कर पाएंगे।
मैंने एक कंपनी में कई करोड़ रुपए खोए, लेकिन कभी उसके प्रमोटर्स से तेज आवाज में बात नहीं की। क्योंकि मैंने स्वीकारा कि मैंने ही उन्हें परखने में गलती की है। अपने फैसले के लिए खुद को दोषी ठहराना बेहद जरूरी है। उससे ही आप सीखेंगे और फिर वो गलती कभी नहीं दोहराएंगे।