मध्य प्रदेश( MP) में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण देने के मामले में जबलपुर हाई कोर्ट में हुई मंगलवार को सुनवाई में हाई कोर्ट ने मेडिकल ऑफिसर्स के पदों पर भर्ती के लिए कहा कि मैरिट 27% आरक्षण के हिसाब से बनाई जाए. लेकिन जब तक कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आ जाता तब तक रिक्त पदों पर भर्ती 14% से ज्यादा ना की जाए।
मध्यप्रदेश जबलपुर |राज्य सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण देना चाह रही है। यदि अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण दिया जाता है तो राज्य में आरक्षण का प्रतिशत 50 से ज्यादा हो जाएगा, साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में फैसला सुनाते हुए आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी। लेकिन मंगलवार को हाई कोर्ट में इंदिरा साहनी केस को आधार बनाकर राज्य सरकार की ओर से यह कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी यह माना है कि विशेष परिस्थितियों में आरक्षण का प्रतिशत 50 से ज्यादा किया जा सकता है।
27% आरक्षण के हिसाब से बनाई जाए मैरिट
मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई इसलिए हुई क्योंकि राज्य में कोरोना वायरस की तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए मेडिकल ऑफिसर्स के पदों पर भर्ती की जानी है।मगर सरकार के सामने अब यह संकट है, कि भर्ती 14% के हिसाब से की जाए या फिर 27% के हिसाब से की जाए, कोर्ट ने कहा है कि मैरिट 27% आरक्षण के हिसाब से बनाई जाए, जब तक कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक रिक्त पदों पर भर्ती 14% से ज्यादा ना की जाए,
वरिष्ठ अधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरवराज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव ने ओबीसी वर्ग की आर्थिक और सामाजिक स्थिति और इनकी आबादी का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी आरक्षण बढ़ाना जरूरी है। लेकिन याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी स्थिति में आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता।
कमलनाथ सरकार ने बनाया था कानून
मध्य प्रदेश की तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी से आरक्षण की सीमा 63 फीसदी तक बढ़ा दी थी, जो सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन है. बता दें कि पिछड़ा वर्ग (OBC) को 14 फीसद से 27 फीसद आरक्षण का कानून बना दिया था, जिसके बाद कई संगठनों और बीजेपी ने हाई कोर्ट में इस कानून को चुनौती दी थी।
10 अगस्त को होगी इस मुद्दे पर बहस
इस मुद्दे पर अगली बहस 10 अगस्त को होगी. जिसमें सभी पक्षों को लिखित बहस पेश करनी है. उसके बाद हो सकता है कि कोर्ट अपना अंतिम फैसला सुना दे।