नई दिल्ली। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर प्रस्तावित विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2021 को संसद में पेश करने से पहले उस पर विभिन्न संबद्ध पक्षों के साथ विस्तार से विचार-विमर्श का आग्रह किया है। एआईपीईएफ के बयान के अनुसार प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि महामारी अवधि के दौरान प्रस्तावित विधेयक को संसद में पेश नहीं किया जाना चाहिए और बिजली क्षेत्र के इंजीनियरों तथा कर्मचारियों के साथ इस पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए। संगठन के प्रवक्ता वी के गुप्ता ने एक बयान में कहा कि बिजली मंत्रालय ने बिजली (संशोधन) विधेयक, 2021 का मसौदा पांच फरवरी को केवल राज्य ऊर्जा सचिवों को भेजा और उनसे दो सप्ताह के भीतर अपनी टिप्पणी के साथ लौटाने को कहा, जो पूरी तरह से अपर्याप्त था। बयान के अनुसार यह प्रक्रिया असंगत और दोषपूर्ण है क्योंकि बिजली क्षेत्र के इंजीनियरों तथा कर्मचारियों, बिजली उपभोक्ताओं सहित महत्वपूर्ण पक्षों को विचार-विमर्श में शामिल नहीं किया गया और उन्हें इससे बाहर रखा गया। इसके अलावा, दो सप्ताह का समय पूरा होने से पहले ही, संशोधनों पर विचार के लिए 17 फरवरी को वीडियो कांन्फ्रेंस आयोजित करने का प्रस्ताव रखा गया था। वीडियो कांफ्रेन्स के जरिये विचार-विमर्श भी सिर्फ नियामकों के साथ हुआ। बयान के अनुसार एआईपीईएफ ने शुरू में ही महामारी को देखते हुए इस पर विचार-विमर्श को लेकर छह महीने का समय देने का आग्रह किया था।
संगठन ने कहा कि बिजली समवर्ती सूची में है। ऐसे में विद्युत कनून 2003 में संशोधन की प्रक्रिया में प्रमुख पक्षों को अलग रखना संविधान के खिलाफ है। गुप्ता ने कहा कि सरकार विद्युत अधिनियम 2003 में संशोधन में जल्दबाजी करने की कोशिश कर रही है। बिना पर्याप्त विश्लेषण या विचार के जल्दबाजी में किये गये निर्णयों के परिणामस्वरूप दूरगामी नुकसान हो सकता है। उन्होंने आग्रह किया कि सरकार को पहले राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों के प्रदर्शन की समीक्षा करनी चाहिए और उसके बाद विद्युत संशोधन विधेयक का मसौदा चर्चा के लिये उसे सार्वजनिक करना चाहिए। एआईपीईएफ ने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं को पूरा करने के लिये हरित ऊर्जा का लक्ष्य 2022 के 1,75,000 मेगावाट से बढ़ाकर 2030 तक 4,50,000 मेगावाट करने को अंतिम रूप देने से पहले इस पर चर्चा की जरूरत है।