सतारा। अभी देश कोरोना वायरस (Corona Virus) से जूझ रहा है. महाराष्ट्र (Maharastra) इससे संघर्ष करने वालों में सबसे ऊपर था. अभी यह संघर्ष खत्म ही नहीं हुआ था कि सतारा जिले (Satara District) के महाबलेश्वर की गुफाओं (Mahabaleshwar Caves) में निपाह वायरस (Nipah Virus) का पता चला है. महाराष्ट्र (Maharastra) के मिनी कश्मीर (Mini Kashmir) के नाम से मशहूर महाबलेश्वर (Mahabaleshwar) के जंगलों में एक गुफा के अंदर रहने वाले चमगादड़ों में निपाह वायरस (Nipah Virus) की मौजूदगी की पुष्टि हुई है. इस बात से महाबलेश्वर के स्थानीय लोग परेशान हैं, जबकि स्थानीय कलेक्टर कार्यालय और वन विभाग को इसकी कोई जानकारी नहीं है.मार्च 2020 में पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के वैज्ञानिकों ने महाबलेश्वर की एक गुफा में चमगादड़ों के गले से स्वैब के नमूने लिए. सैंपल की जांच के बाद पता चला कि चमगादड़ों के स्वैब में निपाह वायरस मिला है. वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व डॉ. प्रज्ञा यादव कर रही थीं. डॉ. प्रज्ञा यादव के अनुसार, इससे पहले निपाह वायरस महाराष्ट्र के किसी भी चमगादड़ में नहीं मिला था. निपाह वायरस अगर इंसानों में फैलता है तो जानलेवा हो सकता है. निपाह वायरस का अभी तक कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है, इसलिए मृत्यु का जोखिम 65 से 100 प्रतिशत है.
निपाह वायरस की खबर के बाद पचगनी क्षेत्र के महाबलेश्वर में लोग चिंतित हैं. इस क्षेत्र के लोगों की आजीविका पर्यटन पर आधारित है. लेकिन जिला कलेक्टर कार्यालय और वन विभाग को इस बात की जानकारी नहीं थी कि NIV वैज्ञानिकों ने महाबलेश्वर से चमगादड़ों के स्वैब के नमूने लिए हैं. वहीं. अगर चमगादड़ों में निपाह वायरस पाया गया तो अब यह सवाल उठ रहा है कि इस रिपोर्ट को एक साल तक दबाया क्यों गया? एक साल के बाद इसे सार्वजनिक क्यों किया जा रहा है.
जब सतारा जिला वन विभाग के उप-वन संरक्षक महादेव मोहिते से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहगा कि हमें अभी तक यह सूचना नहीं मिली है कि महाबलेश्वर की गुफाओं में चमगादड़ों के स्वैब में निपाह वायरस मिला है. वैज्ञानिकों ने हमें इसकी कोई जानकारी नहीं दी है. हमारे पास ऐसी कोई रिपोर्ट अब तक नहीं आई है.
इस बीच, चमगादड़ों पर शोध कर रहे डॉ. महेश गायकवाड़ ने कहा है कि लोगों को इससे घबराने की जरूरत नहीं है. निपाह वायरस इंडोनेशिया, मलेशिया और उत्तर-पूर्व में पाया जाता है. निपाह वायरस अभी तक महाराष्ट्र में चमगादड़ों में नहीं मिला है. NIV ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसे पूरा पढ़ने के बाद ही इस पर चर्चा की जा सकती है.
डॉ. महेश गायकवाड़ कहता है कि निपाह वायरस खासतौर पर मलेशिया के चमगादड़ों में पाया जाता है. जब चमगादड़ फल खाकर नीचे फेंक देते हैं और यदि उसे कोई इंसान खा ले तो उसे निपाह वायरस का संक्रमण हो सकता है. इसलिए लोगों को उस जगह नहीं जाना चाहिए जहां वे जंगलों में चमगादड़ बहुत ज्यादा हों. या फिर उन पेड़ों पर पत्थर नहीं मारने चाहिए जहां फल ज्यादा हों और चमगादड़ भी.
सतारा जिला कलेक्टर शेखर सिंह ने कहा कि फिलहाल महाबलेश्वर-पचगनी को पर्यटन स्थल बंद किया गया है. लेकिन निपाह वायरस का कोई खतरा नहीं है. हम जल्दी ही इन दोनों पर्यटन स्थलों को खोलने की तैयारी कर रहे हैं. कोरोना की लहर कम हो रही है. जल्द ही हम आम लोगों को लिए सुरक्षा का ध्यान रखते हुए सीमित मात्रा में टूरिज्म को शुरु करेंगे. NIV की रिपोर्ट के हिसाब से निपाह वायरस मिला है, लेकिन इससे किसी को डरने की जरूरत नहीं है.
आपको बता दें निपाह वायरस आमतौर पर फल खाने वाले चमगादड़ों यानी फ्रूट बैट्स में मिलता है. डराने वाली बात ये है कि इसका कोई इलाज नहीं है. मौत हो सकती है लेकिन यह निर्भर करता है संक्रमण के स्तर पर. निपाह वायरस WHO के दस शीर्ष वायरसों की सूची में शामिल है. निपाह वायरस के खतरनाक होने की कई वजहें हैं.
निपाह वायरस का इंक्यूबेशन पीरियड (Incubation Period) यानी संक्रामक समय बहुत लंबा होता है. कई बार तो यह 45 दिन का भी हो सकता है. इसका मतलब ये है कि जब तक एक इंसान को निपाह संक्रमण के बारे में पता चलता है, तब तक वह कई लोगों को इससे संक्रमित कर चुका होता है. वह अनजाने में लोगों को संक्रमित करता चला जाता है. इससे जानवरों की कई प्रजातियां भी संक्रमित होती हैं.
निपाह वायरस सीधे संपर्क से फैलता है. साथ ही संक्रमित व्यक्ति के साथ खाना शेयर करने से भी फैल सकता है. इससे संक्रमित व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है, खांसी आती है, थकान और दर्द महसूस होता है. इसके अलावा दिमागी बुखार जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. ज्यादा बुखार आने पर दिमाग सूज जाता है और इंसान की मौत हो जाती है.