आज दुनिया भर में विश्व स्वास्थ्य दिवस की 71वीं वर्षगांठ मनायी जा रही है. यह दिवस ऐसे अवसर पर सेलीब्रेट किया जा रहा है, जब भारत समेत दुनिया के अधिकांश देश कोविड-19 की दूसरी खतरनाक लहर की चपेट में है. जिसने अब तक 30 लाख से ज्यादा लोगों की जीवन लीला को खत्म कर दिया. ऐसे में इस दिवस विशेष के मायने बढ़ जाते हैं. गौरतलब है कि साल 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)की स्थापना हुई थी. इसके दो साल बाद यानी 1950 में WHO ने विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने की शुरुआत की.
गौरतलब है कि WHO के अथक प्रयास से दुनिया से चेचक, कालरा, पीत ज्वर, पोलियो जैसी महामारी पर शत-प्रतिशत विजय हासिल किया. परिवार नियोजन, एचआईवी/एड्स, पर्यावरणीय सुरक्षा पर आज भी कार्य चल रहे हैं. लेकिन 2019 में आये कोविड 19 जैसी अब की सबसे खतरनाक महामारी को लेकर WHO संदेह के घेरे में है.
विश्व स्वास्थ्य दिवस का उद्देश्य
विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशन में विश्व स्वास्थ्य दिवस की शुरुआत का मुख्य उद्देश्य था, वैश्विक स्वास्थ्य एवं उससे जुड़ी समस्याओं पर विचार-विमर्श, एवं उसके निवारण की कोशिश करना , ताकि दुनिया भर में समान स्वास्थ्य देखभाल, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं एवं समस्याओं के बारे में लोगों में जागरुकता लाना, तथा स्वास्थ्य संबंधी अफवाहों एवं मिथकों से दूर रहते हुए सेहत के प्रति सचेत रहना.
विश्व स्वास्थ्य दिवस पर WHO की कार्यप्रणाली
- साल 1958 में रूस ने WHO के निर्देशन में चेचक उन्मूलन पर काम शुरू किया. 1977 तक इस दिशा में उसे बड़ी सफलता मिली. सोमालिया को अपवाद मान लें तो 19 साल में पूरी दुनिया से चेचक का नामो-निशान मिट चुका था. 1980 में वैश्विक चेचक उन्मूलन प्रमाणन आयोग ने चेचक के नियमित टीकाकरण को बंद करने की सिफारिश की.
- साल 1960 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नीग्रो जाति में होने वाले संक्रामक रोग यॉज, स्थानीय महामारी सिफलिस, कुष्ठ और आंख से संबंधित रोग ट्रेकोमा को जड़ से खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया. इससे एशिया में कॉलरा जैसी महामारी को नियंत्रित किया जा सका. यही नहीं इसने अफ्रीका में पीत ज्वर जैसी स्थानीय महामारी को नियंत्रित करने में भी अहम भूमिका निभाई.
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1970 में परिवार नियोजन, बच्चों की रोगविरोधी क्षमता बढ़ाने के लिए 1974 में टीकाकरण कार्यक्रम शुरु किया और उस पर नियंत्रण पाने में सफल रहा.
- साल 1987 में प्रसूता मृत्यु दर कम करने वाले कार्यक्रम भी काफी हद तक सफल रहे.
- WHO के दिशा निर्देशन में साल 1988 में पोलियो उन्मूलन और 1990 में अनियमित लाइफ स्टाइल से होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए अभियान चलाया, जो भी सफलता के अंतिम मोड़ पर है.
- साल 1992 में डब्ल्यूएचओ ने पर्यावरणीय सुरक्षा की पहल और 1993 में एचआईवी/एड्स को लेकर संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर कार्यक्रम शुरू किया. इस पर कार्यक्रम अभी भी जारी है.
कोविड 19 के मुद्दे पर शक के घेरे में WHO!
कोविड 19 की महामारी पर WHO की गतिविधियां शुरु से संदिग्ध रही हैं. इस महामारी के शुरुआती दिनों में चीन पर इस खतरनाक वायरस के संक्रमण से संबंधित जानकारी को छिपाने का आरोप लग रहा था, तब चीन ने न केवल आरोप का खंडन करते हुए कहा था कि ये वायरस कहीं और से वुहान लाया गया था. बल्कि चीनी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने तो यहां तक कह दिया था कि कोरोना के वायरस प्रसार के लिए अमेरिकी सेना जिम्मेदार है. इन सारे आरोप-प्रत्यारोपों के बीच WHO ने चुप्पी साध रखी थी, साथ ही 2020 के अंतिम माहों में WHO की जांच टीम ने चीन को क्लीन चिट भी दे दिया.
WHO की इस दोगली नीति से दुनिया भर का माथा ठनका था. लोगों ने WHO के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अधानोमम गेब्रेयेसस पर पक्षपात का भी आरोप लगाया. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने तो WHO की अमेरिकी फंड में कटौती तक का आदेश दे दिया था. इस सप्ताह इसी संदर्भ में 73वीं वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली की बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हो रही है. मीटिंग में अमेरिका और भारत समेत रूस, युनाइटेड किंगडम, कनाडा, तुर्की, इटली, बांग्लादेश इंडोनेशिया, साउथ अफ्रीका और जापान समेत 62 देश एकत्र हुए हैं. इसके क्या परिणाम हो सकते हैं, आने वाला कल बतायेगा.