हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। लेकिन फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि मनाते हैं। इस साल महाशिवरात्रि 11 मार्च (गुरुवार) को है। इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए भक्त व्रत रखते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महादेव ने अपने सिर पर मां गंगा और चंद्रदेव को क्यों जगह दी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव के हर आभूषण का विशेष महत्व और प्रभाव है। आप भी जानिए-
क्यों मां गंगा को सिर पर धारण करते हैं भगवान शिव-
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भागीरथ एक प्रतापी राजा थे। उन्होंने अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की ठानी। उन्होंने कठोर तपस्या की। मां गंगा उनकी तपस्या से प्रसन्न हुईं तथा स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गईं। मां गंगा ने भागीरथ से कहा कि यदि वे सीधे स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेंगीं तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी और नष्ट हो जाएगी।
मां गंगा की बात सुनकर भागीरथ सोच में पड़ गए। मां गंगा को यह अभिमान था कि कोई उसका वेग सहन नहीं कर सकता। तब उन्होंने भगवान भोलेनाथ की उपासना शुरू कर दी। संसार के दुखों को हरने वाले शिव शम्भू प्रसन्न हुए और भागीरथ से वर मांगने को कहा। भागीरथ ने अपना सब मनोरथ उनसे कह दिया।
गंगा जैसे ही स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने लगीं तो भगवान शिव ने उन्हें जटाओं में कैद कर लिया। वह छटपटाने लगी और शिव से माफी मांगी। तब शिव ने उसे जटा से एक छोटे से पोखर में छोड़ दिया, जहां से गंगा सात धाराओं में प्रवाहित हुईं।
भगवान शिव के सिर पर क्यों विराजमान हैं चंद्रमा-
एक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने इस सृष्टि की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकले विष को पी लिया था। विष के प्रभाव से जब भगवान शंकर का शरीर गर्म होने लगा तब चंद्रमा ने भोलेशंकर के सिर पर विराजमान होकर उन्हें शीतलता प्रदान करने की प्रार्थना की। लेकिन शिव ने चंद्रमा के आग्रह को नहीं माना। लेकिन जब भगवान शंकर विष के तीव्र प्रभाव को सहन नहीं कर पाये तब देवताओं ने सिर पर चंद्रमा को धारण करने का निवेदन किया। जब भगवान शिव ने चंद्रमा को धारण किया तब विष की तीव्रता कम होने लगी। तभी से चंद्रमा शिव के सिर पर विराजमान हैं। चंद्रमा को भगवान शिव का मुकुट माना जाता है।