लोकसभा में एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि शादी से पहले लड़के और लड़की की कुंडली मिलाने के साथ-साथ उनके खून की रिपोर्ट का भी मिलान करना चाहिए. दरअसल, सांसद मनोज कोटक ने थैलेसीमिया बीमारी को लेकर एक सवाल पूछा था. इसी सवाल का जवाब देते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने इस बीमारी को रोकने के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा इसके लिए सामाजिक मुहिम चलाकर लोगों को जानकारी देनी होगी.
हर्षवर्धन ने कहा कि लोगों को ‘रक्त-कुण्डली’ के जरिए शादी से पहले युवक और युवती के खून की जांच होनी चाहिए ताकि उन्हें इसी हिसाब से मेडिकल सलाह दी जा सके. इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि कपल के होने वाले बच्चे थैलेसीमिया के वाहक न बनें. यह समाज के लिए और इस बीमारी को खत्म करने के लिए सबसे बड़ा योगदान होगा. हर साल 8 मई को थैलेसीमिया दिवस भी मनाया जाता है.
हर साल थैलेसीमिया से ग्रसित 10 हजार बच्चे पैदा होते हैं
मेडिकल एक्सपर्ट भी इस बात को मानते हैं कि शादी से पहले थैलेसीमिया टेस्ट होनी चाहिए. थैलेसीमिया को लेकर जागरुकता भी बहुत जरूरत होती है. इस बीमारी के बारे में कम जागरुकता की वजह से इसका इलाज नहीं हो पाता है. इस प्रकार माता-पिता जीन के जरिए इस बीमारी को अगली पीढ़ी तक ट्रांसफर कर देते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, हर साल भारत में थैलेसीमिया से ग्रसित 10,000 बच्चों का जन्म होता है. इसका सबसे कारण है कि इस बीमारी को लेकर लोगों में जागरुकता नहीं है. परिणामस्वरूप, हर साल थैलेसीमिया से ग्रसित हजारों लोगों की मौत हो जाती है. ग्रामीण इलाकों में ऐसा सबसे ज्यादा देखने को मिलता है.
इन्हीं सब वजहों को देखते हुए कहा जा रहा है कि शादी से पहले कपल को थैलेसीमिया की जांच करानी चाहिए. चूुंकि यह बीमारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती रहती है, ऐसे में जरूरी है कि हर किसी को अपने थैलेसीमिया रिपोर्ट के बारे में जानकारी हो.
क्या होता है थैलेसीमिया?
थैलेसीमिया एक तरह की खून की बीमारी है, जिसमें ब्लड सेल्स बहुत कमजोर और खराब हो जाते हैं. कुछ लोगों में जीन्स के सही वैरिएंट के न होने से भी यह बीमारी होती है. इससे हिमोग्लोबिन प्रोटीन बनाने की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है. बता दें कि हिमोग्लोबिन के माध्यम से ही रेड ब्लड सेल्स आॅक्सीजन पहुंचाते हैं. माता-पिता में से अगर कोई भी थैलेसीमिया से ग्रसित है तो 25 फीसदी तक संभावना है कि उनके बच्चे को भी यह बीमारी होगी.
थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चे को एक तय समय के अंदर बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है. इसलिए डॉक्टर्स सलाह देते हैं कि जब माता/पिता थैलेसीमिया से ग्रसित हों तो उन्हें प्रेग्नेंसी से बचना चाहिए. डॉक्टर्स का कहना है कि अगर कोई बच्चा इस बीमारी के साथ पैदा होता है तो उनके हिमोग्लोबिन डिसआॅर्डर के इलाज का एक ही तरीका है. वो यह बच्चे को उचित डोनर की मदद से बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराया जाए.
क्या है थैलेसीमिया से बचने का रास्ता?
कई जांच में मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि थैलेसीमिया को रोकने में शादी से पहले इसकी जांच कारगर साबित हो सकती है.भारत में इस जांच की यह सुविधा दशकों से है. हालांकि, भारत में अभी भी इस बीमारी के जांच के लिए टेस्टिंग सेंटर्स संख्या बहुत कम है. मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि गरीब वर्ग के लिए इस जांच को मुफ्त करना चाहिए ताकि इसे बीमारी को समय रहते रोका जा सके. जमीनी स्तर पर इसके लिए तकनीकी इन्फ्रास्ट्रक्चर भी डेवलप करने की जरूरत है. केंद्र सरकार इस दिशा में काम भी कर रही है.
ईरान में होती है थैलेसीमिया की जांच
ईरान समेत कई ऐसे देश हैं थैलेसीमिया की जांच और उसके बाद काउंसलिंग की वजह से काफी हद तक इस बीमारी पर लगाम लगाया जा सका है. ईरान में थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों की मौत का आंकड़ा कम हुआ है. बीते 20 साल में इसमें काफी सुधार हुआ है. यहां जिन कपल में इस बीमारी को लेकर रिस्क होता है, उन्हें जेनेटिक काउंसलिंग की सुविधा दी जाती है. अगर कोई युवक-युवती में इस बीमारी के लक्षण पाए जाते हैं और वे शादी करते हैं तो उन्हें जेनेटिक टेस्टिंग के लिए हर तरह की मदद की जाती है.