विभिन्न शुभ अवसरों पर अक्सर घर में हवन का आयोजन किया जाता है। यदि आपने कभी ध्यान दिया हो तो देखा होगा कि मंत्र के पश्चात् स्वाहा शब्द अवश्य कहा जाता है, इसके पश्चात् ही आहुति दी जाती है। दरअसल स्वाहा का मतलब है सही रीति से पहुंचाना। मतलब मंत्र के साथ दी जा रही आहुति स्वाहा बोलने के पश्चात् ही अग्निदेव तक सही ढंग से पहुंचती है तथा वे इस आहुति को स्वीकार करते हैं। एक पौराणिक प्रथा के मुताबिक, स्वाहा को अग्निदेव की पत्नी भी माना जाता है। हवन के चक्र स्वाहा बोलने को लेकर कई प्रकार की कथाएं प्रचलित हैं, आज हम आपको इसके बारे में बताते हैं कुछ अनसुन्नी बातें:-
पहली कथा :-
कथा के मुताबिक स्वाहा नामक राजा दक्ष की एक बेटी थीं, जिनकी शादी अग्निदेव के साथ संपन्न कराया गया था। इसीलिए अग्नि में जब भी कोई चीज चढ़ाई जाती हैं, तो उनकी पत्नी को भी साथ में याद किया जाता है, तभी अग्निदेव उस चीज को कबूल करते हैं। अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान तथा शुचि नामक तीन बेटे भी बताए जाते हैं।
दूसरी कथा :-
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार देवताओं के पास अकाल पड़ गया तथा उनके पास खाने-पीने की चीजों का आभाव हो गया था। इस विकट हालात से बचने के लिए भगवान ब्रह्मा जी ने उपाय निकाला कि धरती पर ब्राह्मणों द्वारा खाद्य-सामग्री देवताओं तक पहुंचाई जाए। इसके लिए अग्निदेव का चुनाव किया गया क्योंकि अग्नि में जाने के पश्चात् कोई भी चीज पवित्र हो जाती है। किन्तु अग्निदेव की क्षमता उस वक़्त भस्म करने की नहीं हुआ करती थी इसीलिए स्वाहा की उत्पत्ति हुई तथा स्वाहा को निर्देश दिया गया कि वे अग्निदेव के साथ रहें। इसके पश्चात् जब भी कोई चीज अग्निदेव को समर्पित की जाती थी तो स्वाहा उसे भस्म कर देवताओं तक पहुंचा देती थीं। तब से आज तक स्वाहा हमेशा अग्निदेव के साथ हैं।
तीसरी कथा :-
एक अन्य कथा के मुताबिक, प्रकृति की एक कला के तौर पर स्वाहा का जन्म हुआ था तथा स्वाहा को प्रभु श्री कृष्ण से ये आशीर्वाद प्राप्त था कि देवताओं को ग्रहण करने वाली कोई भी सामग्री बगैर स्वाहा को समर्पित किए भगवानों तक नहीं पहुंच पाएगी। यही कारण है कि जब भी हम अग्नि में कोई खाद्य वस्तु अथवा पूजन की सामग्री समर्पित करते हैं, तो स्वाहा का उच्चारण करना आवश्यक होता है।