अश्विन मास में महालक्ष्मी व्रत किया जाता है। इस साल महालक्ष्मी व्रत या गजलक्ष्मी व्रत 10 सितंबर को पड़ रहा है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से मां लक्ष्मी का सदैव साथ बना रहता है। इसके साथ ही व्रत करने वालों को सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कहते हैं कि महालक्ष्मी व्रत में गज यानी हाथी पर बैठी महालक्ष्मी की पूजा करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। राधाष्टमी के दिन से शुरू होने वाले इस व्रत का पितृपक्ष की अष्टमी के दिन पारण किया जाता है।
माता लक्ष्मी के 8 स्वरूप आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, विजयालक्ष्मी, संतान लक्ष्मी और विद्या लक्ष्मी माने गए हैं। महालक्ष्मी व्रत के दिन लोग हाथी पर बैठी मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करने करते हैं। मान्यता है कि विधि-विधान से पूजा और व्रत कथा पढ़ने या सुनने मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। महालक्ष्मी व्रत में व्रत कथा को जरूर सुनना या पढ़ना चाहिए, वरना यह व्रत अधूरा माना जाता है।
एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह हर दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु का अराधना करता था। एक दिन उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और ब्राह्मण से एक वरदान मांगने के लिए कहा। तब ब्राह्मण ने उसके घर मां लक्ष्मी का निवास होने की इच्छा जाहिर की। तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण को लक्ष्मी प्राप्ति का मार्ग बताया। भगवान विष्णु ने कहा कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है और वह यहां आकर उपले थापती है। तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना वह मां लक्ष्मी हैं।
भगवान विष्णु ने ब्राह्मण से कहा, जब मां लक्ष्मी स्वयं तुम्हारे घर पधारेंगी तो घर धन-धान्य से भर जाएगा। यह कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। अगले दिन ब्राह्मण सुबह-सुबह ही मंदिर के पास बैठ गया। लक्ष्मी मां उपले थापने के लिए आईं तो ब्राह्मण ने उनसे घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर माता लक्ष्मी समझ गईं कि यह विष्णुजी के कहने पर ही हुआ है।
लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा कि मैं तुम्हारे साथ चलूंगी लेकिन तुम्हें पहले महालक्ष्मी व्रत करना होगा। 16 दिन तक व्रत करने और 16 वें दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाएगी। ब्राह्मण ने मां लक्ष्मी के कहे अनुसार व्रथ किया और मां लक्ष्मी को उत्तर दिशा की ओर मुख करके पुकारा। इसके बाद मां लक्ष्मी ने अपना वचन पूरा किया। माना जाता है कि तभी से महालक्ष्मी व्रत की परंपरा शुरू हुई थी।