हर साल आने वाला जन्माष्टमी का पर्व इस साल भी आने वाला है. इस साल यह त्यौहार 12 अगस्त को आने वाला है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ अनोखा. जी दरअसल कहा जाता है कभी भी भूल से भी श्री कृष्णा की पीठ नहीं देखनी चाहिए. जी दरअसल ऐसा करने से इंसान पाप का भागीदार बन जाता हैं. अब आप सोच रहे होंगे कैसे तो आइए जानते हैं... जी दरअसल भगवान श्रीकृष्ण की पीठ के दर्शन न करने के पीछे एक प्रचलित कथा है जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं.
पौराणिक कथा - जब श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवन भी भगवान से युद्ध करने आ पहुंचा. जब कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुंचकर ललकारने लगा. तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले और इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ गया. कृष्ण के वहां से भागने की भी एक वजह थी. श्रीकृष्ण जानते थे कि उनका सुदर्शन कालयवन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे. दूसरा, कृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते जब कि पुण्य का बल शेष रहता है. जब कृष्ण रण छोड़कर भागने लगे तो कालयवन उनकी पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढ़ गया. ऐसा कहा जाता है कि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है.
कालयवन के पुण्य का प्रभाव खत्म हो गया तो कृष्ण एक गुफा में चले गए, जहां मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था. मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को निंद से जगाएगा और वो उनकी नजर पड़ते ही भस्म हो जाएगा. कृष्ण ने गुफा में जाकर अपनी एक पोशाक मुचुकुंद को उढ़ा दी. इसके बाद कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठा दिया और राजा की नजर पड़ते ही राक्षस वहीं भस्म हो गया. इस वजह से कहते हैं कि भगवान कृष्णा के पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे पुण्य कम होते हैं और अधर्म बढ़ने लगता है.
हर साल आने वाला जन्माष्टमी का पर्व इस साल भी आने वाला है. इस साल यह त्यौहार 12 अगस्त को आने वाला है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ अनोखा. जी दरअसल कहा जाता है कभी भी भूल से भी श्री कृष्णा की पीठ नहीं देखनी चाहिए. जी दरअसल ऐसा करने से इंसान पाप का भागीदार बन जाता हैं. अब आप सोच रहे होंगे कैसे तो आइए जानते हैं... जी दरअसल भगवान श्रीकृष्ण की पीठ के दर्शन न करने के पीछे एक प्रचलित कथा है जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं.
पौराणिक कथा - जब श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवन भी भगवान से युद्ध करने आ पहुंचा. जब कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुंचकर ललकारने लगा. तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले और इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ गया. कृष्ण के वहां से भागने की भी एक वजह थी. श्रीकृष्ण जानते थे कि उनका सुदर्शन कालयवन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे. दूसरा, कृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते जब कि पुण्य का बल शेष रहता है. जब कृष्ण रण छोड़कर भागने लगे तो कालयवन उनकी पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढ़ गया. ऐसा कहा जाता है कि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है.
कालयवन के पुण्य का प्रभाव खत्म हो गया तो कृष्ण एक गुफा में चले गए, जहां मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था. मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को निंद से जगाएगा और वो उनकी नजर पड़ते ही भस्म हो जाएगा. कृष्ण ने गुफा में जाकर अपनी एक पोशाक मुचुकुंद को उढ़ा दी. इसके बाद कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठा दिया और राजा की नजर पड़ते ही राक्षस वहीं भस्म हो गया. इस वजह से कहते हैं कि भगवान कृष्णा के पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे पुण्य कम होते हैं और अधर्म बढ़ने लगता है.