मंगलवार को इसकी घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह भी कहा कि इसके लिए जो भी ज़रूरी क़ानून है वह जल्द बनाया जाएगा.
मुख्यमंत्री ने यह ऐलान ट्विटर पर एक वीडियो जारी कर किया.
उन्होंने कहा, "मेरे प्रिय प्रदेशवासियों, अपने भांजे-भांजियों के हित को ध्यान में रखते हुए हमने निर्णय लिया है कि मध्यप्रदेश में शासकीय नौकरियाँ अब सिर्फ मध्यप्रदेश के बच्चों को ही दी जाएंगी. इसके लिए आवश्यक क़ानूनी प्रावधान किया जा रहा है. प्रदेश के संसाधनों पर प्रदेश के बच्चों का अधिकार है."
मुख्यमंत्री की घोषणा इसलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि अभी तक प्रदेश के बाहर के बच्चे बड़ी तादाद में नौकरी में आवेदन करते थे और चुने भी जाते थे. इसमें किसी भी तरह की कोई रोकटोक नहीं थी. लेकिन इसके बाद क्या स्थिति बनती है, यह देखना होगा.
वहीं मुख्यमंत्री ने अभी यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि प्रदेश के बाहर के जो लोग यहां पर रह रहे हैं उनके लिए क्या नियम होंगे.
प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ट्वीट कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस घोषणा को ऐतिहासिक फ़ैसला बताया है.
कांग्रेस ने किया फ़ैसले का स्वागत
वहीं विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने भी इस निर्णय का स्वागत किया है.
कांग्रेस मीडिया सेल के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने कहा, "मध्यप्रदेश सरकार को इस मुद्दे की ख़बर 15 साल तक नहीं आयी और 15 साल तक मध्यप्रदेश की जनता और विद्यार्थियों का शोषण हुआ. जब हमारी सरकार ने 70 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की और दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश से 10वीं की परीक्षा पास करने की अनिवार्यता की मांग की. तब जाकर इस सरकार ने यह कदम उठाया है."
भूपेंद्र गुप्ता ने कहा, "देर आए दुरुस्त आए. मध्यप्रदेश के बच्चों का जिस भी निर्णय में हित छुपा है कांग्रेस पार्टी उसका स्वागत करती है."
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कुछ दिनों पहले मांग की थी कि सरकार सरकारी नौकरी में स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता देने के लिए क़ानून बनाए. उन्होंने कहा था कि मौजूदा समय में नौजवान बेरोज़गार हो रहे हैं इसलिए यह ज़रूरी है कि उन्हें सरकारी नौकरी में मौका दिया जाए.
उन्होंने यह भी कहा था कि सरकारी नौकरी उन्हें ही दी जानी चाहिए जिन्होंने 10वीं की परीक्षा प्रदेश से पास की हो.
उमर अब्दुल्ला का तंज़
लेकिन इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ देश के नेताओं की प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पर तंज़ कसा है. उन्होंने ट्वीट किया, "जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में नौकरियां तो सभी के लिए हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में सिर्फ राज्य के लोगों के लिए ही."
इसके पहले कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ ने भी निजी क्षेत्र की नौकरियों में राज्य के युवाओं को 70 फ़ीसदी आरक्षण देने की बात कही थी. उन्होंने भी लगभग एक साल पहले इसके लिए क़ानून बनाने की बात कही थी.
उन्होंने कहा था, "निजी क्षेत्रों में राज्य के स्थायी निवासियों को प्राथमिकता दी जाएगी. नई औद्योगिक इकाई शुरू होने पर इसे लागू किया जाएगा. इसके तहत कुल रोज़गार का 70 प्रतिशत मध्य प्रदेश के स्थायी निवासियों को ही देना होगा."
क्या इसके पीछे राजनीति है?
इस पूरी घोषणा को प्रदेश में होने वाले उपचुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है. मध्यप्रदेश में इस वक़्त भाजपा की सरकार है और उन्हें 27 सीटों पर उपचुनाव लड़ना है. अगर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सरकार में बने रहना है तो उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा सीटें जीतनी होगी.
माना जा रहा है कि यह घोषणा उसी चुनाव को देखते हुए की गई है. सरकार ने इसके लिए क़ानून में संशोधन की बात भी की है.
राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता मानते हैं कि यह पूरा फ़ैसला चुनाव को लेकर किया गया है.
उन्होंने कहा, "इससे बहुत ज़्यादा फ़ायदा नहीं होना है लेकिन सरकार को उम्मीद है कि वो इस मुद्दे से फ़ायदा उठाएगी. यह मामला अभी लंबा चलेगा और तब तक चुनाव भी ख़त्म हो जाएंगे."
उनका यह भी कहना है कि प्रदेश में सरकारी नौकरी मिलना सरकार ने ही मुश्किल बना दिया है.
उन्होंने कहा, "सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 कर दी गई उसके अलावा बड़ी तादाद में शिक्षकों को संविदा पर रखा गया है. सरकारी नौकरी की कमी नहीं है बल्कि नीति ऐसी है जिससे यह प्रतीत होता है कि सरकारी नौकरियां तो है ही नहीं."
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